Sunday, September 25, 2011

सुख की खोज

सुख की खोज

मनुष्य जो भी कार्य करता है उसके पीछे उसका कोई न कोई निहित स्वार्थ अवश्य ही होता है । बिना उद्देश्य कोई व्यक्ति कभी भी कोई कम नहीं करता है।भगवान आदि शंकराचार्य ने कहा भी है :- कर्म हेतु: कामस्यात प्रवर्तकतवात।
सभी लोगों को  इस बात का अनुभव है कि वह जो भी कार्य कर रहे है उससे उन्हे सुख कि प्राप्ति होगी । उद्देश्य कि पूर्ति न होने पर वह दु:खी और परेशान हो जाता है यहाँ तक कि वह डिप्रेशन  में चला जाता है । यहाँ तक कि वह अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर बैठता है । 
सांसरिक बंधनो में घिरा व्यक्ति यह नहीं समझ पाता कि आखिर वह वास्तव में क्या चाहता है । असली सुख वह कहाँ पाएगा । ऐसे में वह न करने योग्य का  भी कर बैठता है , अपना उल्लू सीधा करने के लिए वह निंदनीय कार्य भी करता है । रिश्वतख़ोरी , चोरी , जुआं , सट्टाबाजी , धांधली घोटाले करना आरंभ कर देता है । यह पता होते हुये कि वह जो कर रहा है वह गलत है उसकी सजा उसे भुगतनी ही पड़ेगी , इस पाप की कोई माफी नहीं है , दण्ड उसको भोगना ही होगा,    
क्षणिक सुख की खातिर वह अपमान भी सह लेता है । टू जी स्पेक्ट्रम ,कामन वेल्थ ,हवाला , बोफोर्स इत्यादि ऐसे घोटाले हैं जो हमारे प्रतिष्ठित नेताओं के द्वारा किए गए है ।किस लिए सिर्फ क्षणिक सुखोपभोग के लिए इतने बुरे कारनामे किए गए ? क्या सुख मिला ? आज तो सिर्फ सजा ही मिली ।
व्यक्ति को हमेशा अपने अवचेतन मन की सुननी चाहिए जो हमारे द्वारा किए गए काम की दिशा बताता है । थोड़े से मोह में पड़ कर , मन की स्थिरता को खोकर ,व्यक्ति भ्रमित हो जाता है । उसी स्थिति में वह अजीबोगरीब कामों को करता रहता है । पथ से भ्रष्ट होकर वह यह समझ नहीं पाता कि उसको क्या करना है , और गर्त में गिरता चला जाता है ,किसी संजीवनी की तलाश में भटकता फिरता है। इसलिए व्यक्ति को जागरूक होकर विवेक पूर्ण निर्णय लेते हुये अपने जीवन को सफलता की ओर ले चलना चाहिए ।
यदि मन फिर भी भटकाव की स्थिति में हो , कुछ समझ न आ रहा हो तो किसी व्यक्ति या ईश्वर जिस पूरी श्रदधा (विश्वास ) हो , उसको अपना आराध्य मान लेना चाहिए और मन की व्यथा को उस पर छोड़कर मन हल्का कर लेना चाहिए , फिर कैसी व्यथा ? यह विश्वास रखना चाहिए की अब समस्या उसकी हुई । और स्व्यम सुख से जीवन बिताना चाहिये । अपने इर्द गिर्द लोगो की ज़िम्मेदारी और स्नेह पूर्वक पूरी निष्ठा से देख रेख करनी चाहिए, अपने कर्तव्यों को निभाना ही सच्चा सुख है । इसी सुख की कामना करनी चाहिए ।     

No comments: